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क्रौंच कृष्ण पक्षे’ तथा’मानस प्रिया बातें तेरी मेरी’ का हुआ लोकार्पण

प्रो रमेश पाठक के पद्य में है ‘रसायन’ और गद्य में ‘विज्ञान’

इस अवसर आयोजित कवि-गोष्ठी  में काव्यपाठ से स्रोता हुए मंत्रमुग्ध

पटना, १४ फरवरी। विज्ञान के प्राध्यापक और हिन्दी के साहित्यकार प्रो रमेश पाठक के साहित्य में उनका वैज्ञानिक चिंतन अपनी पूरी महिमा के साथ लक्षित होता है। पाठकों को उनके पद्य में, काव्य-साहित्य में वर्णित ‘नौ-रसों’ में से अनेक रसों के अतिरिक्त ‘रसायन-शास्त्र’, और गद्य में ‘विज्ञान’ के तत्व प्रचुरता में मिलेंगे। यह एक अच्छी बात है कि साहित्य में विज्ञान को स्थान मिल रहा है, जो नई पीढ़ी को साहित्य से जोड़ने में सहायक सिद्ध हो सकता है।


यह बातें मंगलवार को, बिहार हिन्दी साहित्य सम्मेलन में आयोजित पुस्तक लोकार्पण समारोह एवं कवि सम्मेलन की अध्यक्षता करते हुए, सम्मेलन अध्यक्ष डा अनिल सुलभ ने कही। उन्होंने कहा कि डा पाठक की रचनाओं में प्रयुक्त ‘प्रतीक’ भी अत्यंत मनोरम और सर्वथा साहित्यिक हैं, भाव-पूर्ण भी हैं, किन्तु उनमे वैज्ञानिक तार्किकता भी है। उनकी काव्य-कल्पनाएँ, किसी कवि-मन की कपोल-कल्पित न होकर, विज्ञान-बोध से प्रेरित हैं। इसलिए इनकी रचनाओं में पाठकों को एक नूतन-रस का आनंद भी मिलगा और ज्ञान-वर्द्धन का परितोष भी।
इसके पूर्व पूर्व केंद्रीय मंत्री डा सी पी ठाकुर ने प्रो पाठक के काव्य-संग्रह ‘क्रौंच कृष्ण पक्षे’ तथा लघुकथा-संग्रह ‘मानस प्रिया बातें तेरी मेरी’ का लोकार्पण किया और कहा कि पुस्तकों के लोकार्पण सहित अनेकानेक साहित्यिक आयोजन कर बिहार हिन्दी साहित्य सम्मेलन हिन्दी के लिए बड़ा काम कर रहा है। इतनी सक्रियता देश की किसी भी दूसरी साहित्यिक संस्था में नहीं देखी जा रही है। हिन्दी भाषा और साहित्य के उन्नयन हेतु लेखन और लेखक को उचित अवसर और प्रोत्साहन दिया जाना चाहिए।
पुस्तक पर अपना विचार रखते हुए, ख्याति-लब्ध समालोचक और सम्मेलन के प्रधानमंत्री डा शिववंश पाण्डेय ने कहा कि हिन्दी को विश्व-भाषा बनाने के लिए यह आवश्यक है कि हिन्दी को विज्ञान, तकनीक और व्यवसाय की भाषा बनाना होगा। अर्थात विज्ञान और तकनीकी के क्षेत्र में भी इसका अधिकाधिक प्रयोग हो। लोकार्पित पुस्तक के लेखक ने इस दिशा में एक महत्त्वपूर्ण योगदान दिया है। डा पाठक ने विज्ञान के विषयों में भी हिन्दी में लिखा है और रचनात्मक साहित्य में भी वैज्ञानिक दृष्टि दी है। इनकी रचनाओं में गहन गूढ़ता है। काम शब्दों में बड़ी बातें कहने की क्षमता इनकी विशिष्टता है।
आकाशवाणी के पूर्व सहायक निदेशक और कवि डा किशोर सिन्हा ने कहा कि जब विज्ञान पर साहित्य रचा जाता है तो वह साहित्य तार्किक धरातल पर श्रेष्ठ और विश्वसनीय सिद्ध होता है। इनकी रचनाओं में वैज्ञानिक-दृष्टि स्पष्ट दिखाई देती है। इन्होंने अपनी रचनाओं में, जीवन से जुड़ी समस्याओं का वैज्ञानिक दृष्टि से समाधान देने की चेष्टा की है। सम्मेलन के उपाध्यक्ष डा शंकर प्रसाद, डा मधु वर्मा, डा कल्याणी कुसुम सिंह, तथा ने भी अपने विचार व्यक्त किए।
इस अवसर पर आयोजित कवि-सम्मेलन का आरंभ चंदा मिश्र ने वाणी-वंदना से किया। वरिष्ठ कवि बच्चा ठाकुर, शायर आर पी घायल, डा राजमणि मिश्र, कमल किशोर कमल, डा रेणु मिश्र, अरविंद रंजन दास, अर्जुन प्रसाद सिंह, ई अशोक कुमार, डा अर्चना त्रिपाठी, प्रवीर विशुद्धानन्द, मो शादाब, अश्विनी कविराज, अजीत कुमार भारती, नेहाल कुमार सिंह ‘निर्मल’ आदि ने अपनी रसवन्ती कविताओं से श्रोताओं के मन को ख़ूब गुदगुदाया। मंच का संचालन कवि ब्रह्मानन्द पाण्डेय ने तथा धन्यवाद ज्ञापन कृष्ण रंजन सिंह ने किया।
सम्मेलन के भवन अभिरक्षक डा नागेश्वर प्रसाद यादव, बाँके बिहारी साव, आनन्द मोहन झा, रामाशीष ठाकुर, कुमार गौरव, अमन वर्मा, दुःखदमन सिंह, सच्चिदानंद शर्मा, अमरजीत शांडिल्य, नरेंद्र देव आदि प्रबुद्धजन समारोह में उपस्थित थे।

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