चुनाव परिणाम के निहितार्थ
2020 के दशक का भारत
घिसे-पिटे मुद्दों पर चलने को तैयार नहीं है.अब केवल जातिवाद, सम्प्रदायवाद और परिवारवाद के सहारे निर्णायक वोट हासिल नहीं किया जा सकता है.
11/मार्च/2022
भारत की राजनीति के लिए 10 मार्च का दिन कई मायने में याद किया जाता रहेगा. राजनीतिक जगत के लिए, भारत के लोकतंत्र के लिए और विकास की राजनीति के लिए कल का दिन टर्निंग प्वाइंट के रूप में जाना जाएगा. हालांकि भाजपा की इस जीत को हम केवल भारतीय जनता पार्टी की जीत के हिसाब से मूल्यांकित कर राजनीति की सही व्याख्या या इस जीत के सही निहितार्थ को नजरअंदाज नहीं कर सकते. उत्तर प्रदेश में योगी आदित्यनाथ पर दोबारा जनता ने विश्वास जताकर इस जीत को ऐतिहासिक बना दिया. वही देश की राजनीति से जातिवाद और परिवारवाद की राजनीति को भी अलविदा कहने का पूरा आधार तैयार कर दिया. शायद भाजपा को इस बात का क्रेडिट हमें देना चाहिए कि जाति और तुष्टीकरण की राजनीति को भारतीय जनता पार्टी ने अपने ठोस राजनीतिक प्रबंधन के जरिए पूरी तरह से समेट दिया है.
कमोवेश पंजाब का परिणाम भी यही बता रहा है जहां आम आदमी पार्टी ने जातिवाद, क्षेत्रवाद और संप्रदायवाद की राजनीति को धत्ता बताते हुए आम आदमी की मूलभूत जरूरतों के इर्द-गिर्द राजनीति को केंद्रित कर दिया. कांग्रेस ने चन्नी को मुख्यमंत्री बनाकर उसी पुराने घिसे-पिटे मुद्दों के सहारे राजनीति की नैया पार लगाने की कोशिश की जो अब शायद नए भारत में मुमकिन नहीं है. कांग्रेस को आत्म मूल्यांकन की आवश्यकता है.अपने राजनीति में उसे आमूलचूल परिवर्तन करना होगा. विकास का स्वाद अब देश की जनता ने चक लिया है. उसे जाति धर्म और क्षेत्रवाद के सहारे अधिक दिनों तक बरगलाया नहीं जा सकता है.
राजनीतिक दलों को इस बदले हुए भारत या यूं कहें कि 2020 के बाद के भारत के हिसाब से मुद्दों को तलाशना होगा. महंगाई पर विकास और विश्वास भारी पड़ा. मणिपुर जैसे प्रांत में जदयू को भी ताकत दिखाने का जनता ने मौका दिया तो इसके पीछे का कारण बिहार में नीतीश कुमार के प्रति विश्वसनीयता है. कुल मिलाकर कह सकते हैं कि अब केवल सतही बातों से काम नहीं चलेगा. जनता को विश्वास में लेकर विकास के आयाम गढ़ने होंगे. भाजपा आम आदमी पार्टी की जीतऔर मणीपुर में जदयू की मजबूत उपस्थिति से कम से कम यही परिलक्षित हो रहा है.