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अब कोरोना रक्षक दवाइयों की किल्लत से गाँवों में मचा हाहाकार

अब वक्त आ गया है कि केंद्र और राज्य की सरकार विभिन्न विकास योजनाओं पर होने वाले खर्चों को कुछ दिनों के लिए रोक दे और उसे स्वास्थ्य एवं जनकल्याण के मद पर व्यय करे तभी इस चुनौती से पार पाया जा सकता है।

■ डॉ रणधीर कुमार मिश्र

राष्ट्रीय स्तर पर अदूरदर्शी सोच  ने बुहान से उठी कोरोना रुपी राक्षस का तांडव गांव -कस्बे तक पहुंचा दिया है। गांवों में त्राहिमाम मचना शुरू हो गया है।केंद्र की सरकार राज्यों को अपने स्तर पर इससे निबटने को क्या छोड़ा की देश का हर कोना काल के गाल में समाता जा रहा है।प्रधानमंत्री की सम्वेनशीलता पर पहली बार प्रश्नचिन्ह लगता हुआ दिख रहा है।देश का उच्च न्यायालय एवं सर्वोच्च न्यायालय,इंडियन मेडिकल एशोसिएशन जैसी संस्था भी सम्पूर्ण लॉकडाउन पर केंद्र को विचार करने की सलाह दे रहा है।किन्तु त्वरित निर्णय लेने में माहिर मोदी सरकार इस बार असफल होते दिख रही है।

अब तक शहरों तक सिमटा कोरोना अब गांवों को डराने लगा है।मैंने व्यक्तिगत स्तर पर गांव में कई दवा दुकानों का जब जायजा लिया तो देखा कि कोरोना रक्षक दवाओं की जबरदस्त किल्लत यहाँ होने लगी है।कालाबाजारी करने वाले मौके का जबरदस्त फायदा उठाने लगे हैं।ऐसे में गाँव की भयावहता की कल्पना सहज ही की जा सकती है।

ऐसे में ज़रूरत है कि केंद्र एवं राज्य की सरकार मिलकर कोरोना से प्रभावी जंग लड़े।हो सके तो अन्य विकास योजनाओं पर हो रहे ख़र्च को छह महीने के लिए स्थगित कर स्वास्थ्य सेवा और बेरोजगार हो रहे लोगों पर खर्च किया जाय तथा सम्पूर्ण लोकडाउन पर अविलम्ब विचार किया जाय।

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