आज का प्रसंग
*संत दर्शन करते वक़्त निम्न बातों का ध्यान रखें !!*
प्रस्तुति:पंडित रविशंकर मिश्र
बिना आज्ञा लिए किसी भी संत के पैर न छुएं उन्हें दूर से ही पंचांग प्रणाम करें !!
किसी भी संत से किसी भी प्रकार की निन्दा अथवा बुराई ना करें !!
किसी भी संत के दर्शन करने जाएं तो कुछ फल, किसी मंदिर का प्रसाद या प्रसादी माला लेकर जाएं ! मिठाई के डिब्बे, बिस्किट्स, चॉकलेट आदि ना ले जाएं !!
किसी भी संत को यदि आप सेवा (धन रूप) में देना चाहते हैं तो आज्ञा लेकर संत के आस पास जो भी स्थान हो वहां रख दें, उनके हाथ में न दें !!
किसी भी संत की ऐसे सेवा करें जिससे उनके भजन में वृद्धि हो ! संतों को विलासिता (जैसे मोबाइल या चांदी का अगरबत्ती स्टैंड) की वस्तुएं आदि न दें !!
यदि कोई संत सो रहे हों या प्रसाद पा रहे हों तो उन्हें प्रणाम नहीं करना चाहिए !!
संत से या वैष्णव से मिलते वक़्त उनसे अगली बार मिलने के लिए उपयुक्त समय ले लें !!
ध्यान रहे संत के सामने न तो सोयें न ही कुछ खायें न ही झूठन फैलायें !!
संत के यहां जाने पर अपने झूठे बर्तन धोकर वापिस रखें !
।।श्रीहरि:।।🌺
*एक संत कहा करते थे कि शुद्ध कमाई के धन से बहुत पवित्रता आती है। उनके पास एक राजा आया करते थे।* एक बार राजा ने उनसे पूछा कि ‘महाराज , आपके यहां बहुत से लोग आया करते हैं और आप भी कई लोगों के घरों में भिक्षा के लिए जाया करते हैं । *ऐसा कोई घर आपकी दृष्टि में है , जिसका अन्न शुद्ध कमाई का हो* ? अगर ऐसा घर आपको दीखता है तो बताएं। संत ने कहा कि *’अमुक स्थान पर एक बूढ़ी माई रहती है । उसके घर का अन्न शुद्ध है।* वह ऊन को कातकर उससे अपनी जीविका चलाती है । उसके पास धन नहीं है , साधारण घास- फूस की कुटिया है ; परंतु *वह पराया हक नहीं लेती, इस कारण उसका अन्न शुद्ध है।’* ऐसा सुनकर राजा के मन में आया कि उसके घर की रोटी मिल जाए तो बड़ाअच्छा है! *राजा स्वयं एक भिखारी बन कर उसके घर पहुंचा* और बोला- माता जी ! कुछ भिक्षा मिल जाए। वह बूढ़ी माई भीतर से रोटी लाई और बोली- ‘ बेटा! यह रोटी ले लो।’ *तब राजा ने पूछा- ‘ माता जी, एक बात बताओ कि यह रोटी शुद्ध है न? इसमें पराया हक तो नहीं है?’* तो वह बोली- ‘ देख बेटा, बात यह है कि यह पूरी शुद्ध नहीं है , *इसमें थोड़ा पराया हक आ गया है ।एक दिन रात में बारात जा रही थी। बारात में जो गैस- बतियां थी उनके प्रकाश में मैंने ऊन ठीक की थी – इतना इसमें पराया हक आ गया है! इसके सिवाय मेरी कमाई में कोई कसर नहीं है।’* राजा ने बड़ा आश्चर्य किया कि *इतनी सी कमी का भी इतना ख्याल है!* दूसरे के उस प्रकाश में हमारा क्या अधिकार है कि हम उसमें अपनी ऊन ठीक करें?
🌟साधन – सुधा – सिंधु पृष्ठ ६५१,६५२ गीताप्रेस गोरखपुर
*परम श्रद्धेय स्वामी जी श्री रामसुखदास जी महाराज*
नारायण! नारायण! नारायण !नारायण!