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एसे थे डा लक्ष्मी नारायण सिंह ‘सुधांशु’

उन्होंने कहा था हिन्दी के लिए कुछ भी त्याग सकता हूँ, विधान सभा का अध्यक्ष पद भी
साहित्य सम्मेलन ने जयंती पर श्रद्धापूर्वक किया स्मरण

पटना, १८ जनवरी। हिन्दी भाषा के उन्नयन में भारत के जिन महापुरुषों ने अपना पूरा जीवन समर्पित कर दिया, उनमें एक महान नाम डा लक्ष्मी नारायण सिंह ‘सुधांशु’ जी का भी है, जो बिहार हिन्दी साहित्य सम्मेलन के भी अध्यक्ष रहे और बिहार विधान सभा के भी। वे, राजनीति और साहित्य, दोनों के आदर्श व्यक्तित्व थे। राजनीति में उनका आदर्श ‘महात्मा गांधी’ और हिन्दी-सेवा में उनका आदर्श ‘राजर्षि पुरुषोत्तम दास टंडन’ थे। ‘राजनीति’ और ‘हिन्दी’, उनके लिए ‘देश-सेवा’ की तरह थी।
यह बातें, आज यहाँ, बिहार हिन्दी साहित्य सम्मेलन में सुधांशु जी की जयंती पर आयोजित समारोह की अध्यक्षता करते हुए,सम्मेलन-अध्यक्ष डा अनिल सुलभ ने कही। डा सुलभ ने कहा कि, हिन्दी के प्रति उनका प्रेम कैसा था, वह इस एक घटना से समझा जा सकता है। उनसे एक पत्रकार ने पूछा कि “यदि आपको ‘बिहार विधान सभा’ अथवा ‘हिन्दी प्रगति समिति’ के अध्यक्ष पदों में से कोई एक चुनना पड़े, तो आप किसे चुनेंगे?” सुधांशु जी का उत्तर था- “हिन्दी प्रगति समिति! हिन्दी के लिए मैं कुछ भी त्याग सकता हूँ, विधान सभा का अध्यक्ष पद भी”। तब वे दोनों ही संस्थाओं के अध्यक्ष थे।
डा सुलभ ने कहा कि स्वतंत्र-भारत की सरकार की राज-काज की भाषा ‘हिन्दी’ हो, इस विचार और आंदोलन के वे देश के अग्रिम-पंक्ति के नायक थे। देशरत्न डा राजेंद्र प्रसाद, पुरुषोत्तम दास टंडन, पं मदन मोहन मालवीय, चक्रवर्ती राज गोपलाचारी तथा सुधांशु जी जैसे हिन्दी-भक्तों के कारण ही, भारत की संविधान सभा ने १४ सितम्बर १९४९ को, ‘हिन्दी’ को भारत-सरकार की ‘राज-भाषा’, अर्थात राज-काज की भाषा के रूप में चुना था। हिन्दी को राजकीय भाषा घोषित कारने वाला पहला राज्य बिहार बना, तो इसमें भी मूर्द्धन्य भूमिका सुधांशु जी की ही थी।


अतिथियों का स्वागत करते हुए सम्मेलन के वरीय उपाध्यक्ष और वरिष्ठ साहित्यकार जियालाल आर्य ने कहा कि साहित्य और इतिहास पर डा सुधांशु का बड़ा अधिकार था। हिन्दी के प्रबल पक्षधर थे। गद्य और पद्य में वे समान अधिकार से लिखते थे। उनकी हिन्दी-सेवा सदा याद की जाती रहेगी।
सम्मेलन की उपाध्यक्ष डा मधु वर्मा ने कहा कि सुधांशु जी साहित्य और राजनीति के सेतु और आदर्श थे। वे राजनीति में शुचिता के प्रबल पक्षधर थे। उनकी सादगी और शीलता अद्भुत और अनुकरणीय थी। अंतिम दिनों में उन्होंने राजनीति से स्वयं को अलग कर लिया था। सम्मेलन के पुस्तकालय मंत्री ई अशोक कुमार, ई आनन्द किशोर मिश्र, राज प्रिया रानी, प्रो सुशील कुमार झा और नरेंद्र देव ने भी अपने विचार व्यक्त किए। मंच का संचालन कवि ब्रह्मानन्द पाण्डेय ने तथा धन्यवाद-ज्ञापन प्रबंधमंत्री कृष्ण रंजन सिंह ने किया।
सम्मेलन के प्रशासी अधिकारी नन्दन कुमार मीत, डा चंद्रशेखर आज़ाद, दिगम्बर जायसवाल, कुमारी मेनका, अमन वर्मा, ज्योति कुमारी, कुमारी ख़ुशबू, राहूल कुमार, भरत कुमार, पवन कुमार आदि प्रबुद्धजन उपस्थित थे।

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