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आइये जानते हैं कि क्यों मनाया जाता है करवा चौथ

हम शास्त्रों में वर्णित कथाओं को देखें तो हम पाएंगे कि किस प्रकार पार्वती ने घोर तप करके भगवान शिव को अपने पति के रूप में प्राप्त किया। साथ ही किस प्रकार अपने ढृढ़ संकल्प और निष्ठा से सावित्री यमराज जी से भी अपने पति के प्राण वापस ले आईं

करवाचौथ पर्व की सबसे बड़ी खूबसूरती है, उसमें निहित लाखों महिलाओं की आस्था। यह अपने आप में अद्भुत है कि इस दिन महिलाएं पूरी आस्था के साथ अपने पति की लंबी आयु के लिए इस व्रत को करती हैं। आज इतने बड़े पैमाने पर इसे मनाया जाता है और इसके महत्व को समझा जाता है, लेकिन इसी बीच सबके मन में एक बेहद ज़रूरी सवाल उठता है कि आखिरकार इस पर्व को मनाने की परंपरा का आरंभ किस प्रकार हुआ?

आइये जानते हैं

किस प्रकार हुई करवाचौथ की शुरूआत

एक पौराणिक कथा के अनुसार, असुरों और देवताओं के बीच भयंकर युद्ध चल रहा था। इस युद्ध में हालात ऐसे बन गए कि देवता असुरों के सामने कमज़ोर पड़ने लगे और हारने की कगार पर पहुंच गए थे।

इसके पश्चात् भयभीत देवतागण ब्रह्मा जी की शरण में गए और बोले, “हे ब्रह्म देव, हम किस प्रकार इस युद्ध को जीत सकते हैं, कृपया करके इसका कोई उपाय बताएं।”

ब्रह्म देव बोले कि इस संकट को दूर करने के लिए सभी देवताओं की पत्नियों को व्रत रखना चाहिए और सच्चे मन से अपने-अपने पतियों की विजय की कामना करनी चाहिए।

ब्रह्मा जी के इस सुझाव को मानते हुए, देवताओं की पत्नियों ने कार्तिक मास की शुक्ल पक्ष की चतुर्थी के दिन व्रत रखा और अपने-अपने पतियों की जीत की कामना की।

जब विजयी होकर देवता वापिस लौटे तो सभी पत्नियों ने आखिरकार व्रत का पारण किया। व्रत के पारण के समय आकाश में चंद्रदेवता इसके साक्षी बने थे, माना जाता है तभी से करवाचौथ व्रत को रखने की परंपरा का शुभारंभ हुआ।

करवाचौथ को मनाने की एक अन्य कथा महाभारत काल से भी जुड़ी हुई है, जिसके अनुसार जब नीलगिरि पर्वत पर पांडव पुत्र तपस्या कर रहे थे, तब कई दिनों तक वापिस न लौटने पर, द्रौपदी उनके प्रति काफी चिंतित हो गईं। तब उन्होंने भगवान श्रीकृष्ण का ध्यान किया, तथा श्रीकृष्ण के दर्शन होने पर द्रौपदी ने उनसे पांडवों के कष्टों के निवारण का उपाय पूछा।

तब श्रीकृष्ण बोले, हे द्रौपदी, “मैं तुम्हारी चिंता का कारण समझता हूँ। तुम्हारी समस्या को दूर करने के लिए मैं तुम्हें एक उपाय बताता हूँ। कार्तिक माह की कृष्ण चतुर्थी आने वाली है, उस दिन तुम सच्चे मन से करवाचौथ का व्रत रखना, इससे तुम्हारी सारी चिंता दूर हो जाएगी। श्रीकृष्ण की आज्ञा का पालन करते हुए द्रौपदी ने पूरे विधि-विधान से इस व्रत को किया, तब उन्हें अपने पतियों के दर्शन हुए और इस प्रकार उसकी चिंताएं दूर हो गईं।

अगर हम शास्त्रों में वर्णित कथाओं को देखें तो हम पाएंगे कि किस प्रकार पार्वती जी ने घोर तप करके भगवान शिव को अपने पति के रूप में प्राप्त किया। साथ ही किस प्रकार अपने ढृढ़ संकल्प और निष्ठा से सावित्री यमराज जी से भी अपने पति के प्राण वापिस ले आईं। यह कथाएं दर्शाती हैं कि एक स्त्री के तप, निष्ठा और समर्पण में कितनी शक्ति होती है। अगर वह मन में कुछ ठान लें तो उसे पूरा ज़रूर करती हैं, करवाचौथ भी स्त्रियों के तप और सच्ची निष्ठा का प्रतीक है, और महिलाएं पूरी श्रद्धा से इस व्रत को करती हैं, जिससे उनका सुहाग सुरक्षित रहे

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