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आज का प्रसंग त्याग और नाश

आज का प्रसंग त्याग और नाश

प्रस्तुति:पंडित रविशंकर मिश्र

*त्याग और नाश ये एक ही सिक्के के दो पहलू हैं। स्वयं की इच्छा से किसी वस्तु अथवा पदार्थ को छोड़ना त्याग तथा स्वयं की इच्छा न होते हुए किसी वस्तु अथवा पदार्थ का छूट जाना नाश कहलाता है।।*

*प्रकृत्ति का अपना एक शाश्वत नियम है और वो ये कि मान, पद, प्रतिष्ठा, वैभव कुछ भी और कभी भी यहाँ शाश्वत नहीं रहता। सूर्य सुबह अपने पूर्ण प्रकाश के साथ उदय होता है और शाम होते-होते उसका प्रकाश क्षीण होने लगता है और दिन में प्रचंड प्रकाश फैलाने वाला वही सूर्य अस्ताचल में कहीं अपनी रश्मियों को छुपा लेता है।।*

*रात्रि को चंद्रमा अपनी शीतला बिखेरता है मगर वो भी सुबह होते-होते कहीं प्रकृत्ति के उस विराट आंचल में छुप सा जाता है। सदा कुछ भी नहीं रहने वाला इसलिए बाँटना सीखो! चाहे प्रेम हो, सम्मान हो, समय हो, खुशी हो, धन हो अथवा अन्य कोई भी वस्तु।।*

*जिन फलों को वृक्ष द्वारा बाँटा नहीं जाता एक समय उन फलों में अपने आप सड़न आने लगती है और वो सड़कर वृक्ष को भी दुर्गंधयुक्त कर देते हैं। इसी प्रकार समय आने पर प्रकृत्ति द्वारा सब कुछ स्वतः ले लिया जायेगा,अब ये आप पर निर्भर करता है कि आप बाँटकर अपने यश और कीर्ति की सुगंधी को बिखेरना चाहते हैं या संभालकर, संग्रह और आसक्ति की दुर्गंध को रखना चाहते हैं।।

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