आज का प्रसंग ज्ञानमार्गमें ‘ॐ’ का जप होता है योगमार्ग में ‘सोऽहम्’ का जप होता है भक्ति मार्ग में ‘राम-राम’ आदि
।।श्रीहरिः।।
ज्ञानमार्गमें ‘ॐ’ का जप होता है । योगमार्गमें ‘सोऽहम्’ का जप होता है । भक्तिमार्गमें ‘राम-राम’ आदि
*प्रस्तुति:पंडित रविशंकर मिश्र
हम सत्संग करते हैं, गीता-रामायण पढ़ते हैं, गंगा-स्नान करते हैं, फिर हम नरकोंमें कैसे जा सकते हैं ? हम दुबारा जन्म कैसे ले सकते हैं ?‒यह बात हृदयसे पकड़ लेनी चाहिये । मुक्ति जब होती है, भगवान् माफ करते हैं, तब होती है ।*
*ऐसा सुना है कि जो रात्रि साढ़े ग्यारह या बारह बजे उठकर भजन करता है, वह अन्त समयमें बेहोश नहीं होता । उसे अन्तिम समयतक होश रहता है ।*
*ज्ञानमार्गमें ‘ॐ’ का जप होता है । योगमार्गमें ‘सोऽहम्’ का जप होता है । भक्तिमार्गमें ‘राम-राम’ आदि भगवन्नामका जप होता है । गुरुके नामका जप नहीं होता, प्रत्युत आज्ञा-पालन होता है । गुरुके शरीरकी प्रधानता नहीं है, प्रत्युत शब्दकी प्रधानता है । उस गुरुकी महिमा है, जिसने भगवान्की प्राप्ति करा दी‒‘बलिहारी गुरुदेव की, गोविन्द दियो बताय’ ।*
*ईश्वरबुद्धि माता-पिता और पतिमें करो । कारण कि माता-पिता और पति हमने नहीं बनाये हैं । परन्तु गुरु हम बनाते हैं । अतः हम गुरुकी बात नहीं मानेंगे तो दोष हमारा होगा ।*
*गुरुके दिये मन्त्रमें शक्ति तभी आयेगी, जब गुरुमें शक्ति हो, वह जीवन्मुक्त हो ।*
*मैं गुरु बने बिना वही बात कहता हूँ, जो गुरु कहता है । आप भगवान् श्रीकृष्णको गुरु मानो और गीताको उनका मन्त्र मानो‒यह भी मैं ही कहता हूँ ।*
*माता-पिता शरीरके जनक होते हैं । गुरु, सन्त-महात्मा ज्ञानके जनक होते हैं ।*
*गुरुकी कमी नहीं है । कमी शिष्यकी है । आपकी लगन सच्ची होगी तो गुरु भी मिल जायगा । खास बात लगनकी है । कल्याणकी लगनवाला सच्चा जिज्ञासु कहीं फँसता नहीं । गुरु स्वतः उसके पास आता है । फल पकता है तो तोता स्वतः उसके पास आता है । आपकी सच्ची लगन होगी तो भगवान् कपटी गुरुसे भी छुड़ा देंगे ।*
*जिससे ज्ञान मिले, वह गुरु हो जाता है, चाहे हम उसे गुरु मानें या न मानें । न मानें तो कोई दोष नहीं ।*
*शास्त्रोंमें तत्त्वज्ञ महात्माओंके चरण-रजकी महिमा आयी है, गुरुके चरण-रजका तात्पर्य उनकी कृपासे है ।*
*चेला बननेपर ही बात बतायें‒यह साम्प्रदायिक चीज हो सकती है, पर महात्माओंकी यह रीति नहीं है ।*