आज का प्रसंग
श्रीराधा कृपा
प्रस्तुति:पंडित रविशंकर मिश्र
एक बार जब श्री राधारानी ने श्री सेवाकुंज में रास में आने में बहुत देर लगा दी तो श्यामसुंदर उनकी विरह में रोने लगे। जब राधा रानी को बहुत देर हो गयी तब श्यामसुंदर धीरता ना रख सके। थोड़ी ही देर में राधा रानी रासमंडल में पधारी तभी श्याम मान ठान कर बैठ गए। राधा रानी बोली ललिताजी इन महाराज को क्या हुआ मुँह फुलाय काहे बैठे हैं। ललिता जी ने पूरी कथा सुना दी। राधा रानी मुस्कुराते हुए श्याम के चिबुक पर हाथ लगाया। जैसे ही लगाया श्याम के चिबुक पर ” दाल चावल” लग गए श्याम और मान ठान बैठे, बोले “एक तो देर से और अब हमारे मुख पर दाल भात्त लगाय सखियों से मज़ाक़ करवाओगी।”राधा रानी मुस्कुरा के बोली- ” ललिताजी एक बात बताओ, यह सब जो बाबा लोग है जो जितने भी भजनानंदी हैं यह सब अपना घरबार छोड़ ब्रज रज में भजन करने आवे, इन्हें यहाँ लाने वाला कौन है ?” ललिता जी बोलीं- “यही आपके श्यामसुंदर तो।”
इसपर राधाजी बोलीं- “ललिता क्या इनका कर्तव्य नहीं बनता के जो इनके नाम का पान करने घर छोड़ भजन करने वृंदावन आए और इनके नाम कीर्तन करते हैं, तो इन्हें उनका ख्याल रखना चाहिए। अब आज इतनी घनघोर वर्षा हुई के वृंदावन के आज दस महात्मा कहीं मधुकरी करने ना जा सके, तब वो सोचे जैसे ठाकुरजी की इच्छा और वे खाली पेट सोने लगे तभी मैं वहीं से गुजर रही थी रासमंडल के लिए मैंने तभी जल्दी-जल्दी उन दस महात्माओं के लिए दाल भात्त बनायी और अपने हाथो से परोस आयी और कहा- ‘बाबा मोहे मेरी मैया ने भेजा है, आप मधुकरी करने को ना-गए-ना। तभी मोहे देर हो गयी और जल्दी-जल्दी में अपने हाथ ना धो सकी तो हाथ में दालभात्त लगा ही रह गया।”
यह सुन श्याम रोने लगे और चरण में पड़कर बोले- राधे ! “वैराग्य उत्पन्न करा घर बार छुड़ाना यह मेरा काम है। परंतु उन सब को प्रेम, दुलार, सम्मान और उनकी रक्षा करना उन्हें अपनी गोद में लेकर बार-बार कहना कृपा होगी, होगी, होगी, ‘मैं हूँ ना’ यह सब तो आप ही करना जानती है।