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वर दे, वीणावादिनि वर दे !

प्रस्तुति:पंडित रविशंकर मिश्र

वर दे, वीणावादिनि वर दे !

प्रिंय स्वतंत्र- रव अम्रत- मंत्र नव

भारत में भर दे !

स्रष्टि के प्रार्ंम्भिक काल मे भगवान श्री विष्णु की आज्ञा से ब्रह्मा जी ने मनुष्य यौनि की रचना की । लेकिन अपनी सर्जना से ब्रह्मा जी
संतुष्ट नहीं थे । उन्हे एसा लगने लगा कि कही
कुछ कमी रह गई हैं, जिस के कारण मौन छाया
रहता हैं । विष्णु भगवान से अनुमति लेकर ब्रह्मा जी ने अपने कमण्डल मे से जल छिडका।
जलकण के पडते ही प्रथ्वी में कंपन होने लगा।
तत्पश्चात प्रक्रिति के बीच से एक अद्भुत शक्ति
प्रकट हुई । सामने चार भुजाओं वाली एक अद्भुत स्त्री थी । जिसके एक हाथ में वीणा थी
तो दूसरा हाथ वर देने की मुद्रा मे था। देवी के
वाकी दो हाथो में पुस्तक व मला थी। ब्रह्मा उस
देवी को देख बेहद प्रभावीत हुए और उन्होने उन से वीणा बजाने के लिए कहा । देवी ने जेसे
ही वीणा का मधुर नाद किया, संसार के समस्त
जीव-जन्तुओं को सहसा वाणी मिल गई । हवा
के चलने से उसमे सरसराहट होने लगी । जलस्रोतों को जेसे ंनव जीवन मिला। ब्रह्मा जी ने उस देवी को सरस्वती ननाम दिया।।सप्तविधि स्वरो का ज्ञान प्रदान करने के कारण इनका नाम सरस्वती पडा । सरस्वती बुद्धि और
बिद्या प्रदाता कर जी है तथा संगीत की रचना करने के
कारण संगीत देवी हे। श्रीकृष्ण ने सरस्वती से
खुश हो कर उन्हे वरदान दिया था कि बसंत
पंचमी के दिन तुमहारी आराधना की जायगी।
धन्यवाद । कैप्टेन हरिहर शर्मा मथुरा ।

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