निवेशकों का भरोसा जीतना होगा
बिहार आज सचमुच बदल गया है।इस राज्य में चौबीस घंटे बिजली, हर घर नल का जल, बेहतरीन सड़क संपर्क, संवेदन शील कानून व्यवस्था और उपजाऊ कृषि योग्य भूमि उपलब्ध है।बावजूद इसके निवेशकों का भरोसा जीतने में बिहार कामयाब नहीं हो पा रहा है।इस पर गौर तो किया जा रहा है किंतु गम्भीर मंथन नहीं हो रहा है।
नीतीश सरकार ने जब 2005 में सत्ता संभाला था तो उसके सामने कानून व्यवस्था और आधारभूत संरचना को यथाशीघ्र पटरी पर लाने की चुनौती थी।सीमित संसाधनों के बल पर बिहार ने मुख्यमंत्री नीतीश कुमार की अगुवाई में इस चुनौती को अवसर में बदल दिया।आज निश्चित रूप से बिहार के किसी भी कोने से राजधानी पटना पांच से छः घण्टे में पहुँचा जा सकता है।गांव-गांव सड़कों का जाल बिछ चुका है।ऐसे में सरकार को भी अब प्राथमिकता बदलना होगा।
विगत कुछ वर्षों में सरकार ने विकास की नई तसवीर खीचने की कोशिश की है।पर्यावरण और अपने सांस्कृतिक धरोहरों के प्रति जागरूकता बढ़ी है, किन्तु आज भी उद्योग उसके सर्वोच्च प्राथमिकता में नहीं दिख रहा है।केवल निवेश नीति बना देने भर से कुछ नहीं होगा।लाल फीता साही के आगे सबकुछ बेकार हो जाता है।एक ओर निवेशकों के लिए रेड कार्पेट बिछाए जा रहे हैं वहीं बिहार में निवेशकों के लिये सचिवालय जैसे स्थान पर बैठकर प्रतीक्षा करने लायक कोई उचित स्थान नहीं है।पैसे लगाने वालों को सरकार का चक्कर पहले लगाना होगा।ऐसे में कोई अपना समय क्यों बर्बाद करेगा? इस पर सरकार को गौर करना होगा।
रही बात छोटे निवेश की तो उनका कचूमर बैंक निकाल देता है।अगर किसी ने शुभ मुहूर्त अपने हिसाब से तय कर लिया है तो वह उसकी भूल है।बैंक कर्ज देने में नानी-दादी को याद करा दे रहा है।ऐसे में निवेश करने वालों का उत्साह खत्म हो जाता है।जरूरत है बैंक पर लगाम लगाने का।हालांकि इसमें थोड़ी बहुत खामिया दिखेंगे किन्तु साख़ जमा अनुपात में बढ़ोतरी होगा, राज्य में निवेश का वातावरण बनेगा, बाजार में मांग बढ़ेगी और उत्साह का संचार होगा।
लेकिन इन सब के लिए सरकार को प्राथमिकता बदलना होगा।अब जरूरत है उद्योग को प्राथमिकता सूची में सबसे ऊपर लाने की।इसमें तुष्टिकरण की नीति को त्यागना होगा।एक सूक्ष्म योजना तैयार करना होगा।पंचायत स्तर पर इसके लिए मुहिम चलाना होगा।राज्य में हर जिला,हर प्रखंड या यूं कहें कि हर पंचायत में कुछ न कुछ विशेष उद्योग के अनुकूल प्राकृतिक वातावरण मौजूद है।जरूरत है उसके उपयोग का।लेकिन यह सब केवल बैंक के भरोसे मुमकिन नहीं हो सकता है।सरकार औद्योगिक वित्त निगम को पुनर्जीवित करे।हो सकता है कि इसका कुछ दुरुपयोग भी हो जाए किन्तु आने वाले समय में राज्य को और यहां के बेरोजगारों को इसका लाभ अवश्य मिलेगा।